नई दिल्ली: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस और विपक्ष के अन्य दलों द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने नामंजूर कर दिया है. सीजेआई के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव लाने की कांग्रेस की घोषणा के बाद से ही ये मुद्दा चर्चा का विषय बन गया था. ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि आखिर ये महाभियोग क्या होता है और इससे कैसे सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जा सकता है. तो चलिए जानतें हैं महाभियोग के बारे में.
प्रस्ताव पर चाहिए दो तिहाई बहुमत
संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है. महाभियोग की कार्यवाही संसद में चलती है. किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिये पेश प्रस्ताव दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है. प्रस्ताव पर पहले उस सदन में विचार होता है जिसके सदस्यों द्वारा महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस दिया जाता है.
समिति करती है जांच
सभापति द्वारा प्रस्ताव मंजूर होने पर उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों की जांच करती है. समिति में दो अन्य सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या कानूनविद हो सकते हैं. समिति की जांच रिपोर्ट प्रस्ताव देने वाले सदन में और फिर दूसरे सदन में पेश की जाती है, जिसे दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है.
सभापति या लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव का नोटिस नामंजूर करने पर इसे पेश करने वाले सदस्य इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र है.
इस दौरान सीजेआई किसी भी मामले की सुनवाई नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट के जजों की आंतरिक प्रक्रिया के मुताबिक आरोपी जज मामलों की सुनवाई से दूर रहते हैं.
Source:-Zeenews
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प्रस्ताव पर चाहिए दो तिहाई बहुमत
संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है. महाभियोग की कार्यवाही संसद में चलती है. किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिये पेश प्रस्ताव दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है. प्रस्ताव पर पहले उस सदन में विचार होता है जिसके सदस्यों द्वारा महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस दिया जाता है.
समिति करती है जांच
सभापति द्वारा प्रस्ताव मंजूर होने पर उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों की जांच करती है. समिति में दो अन्य सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या कानूनविद हो सकते हैं. समिति की जांच रिपोर्ट प्रस्ताव देने वाले सदन में और फिर दूसरे सदन में पेश की जाती है, जिसे दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है.
सभापति या लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव का नोटिस नामंजूर करने पर इसे पेश करने वाले सदस्य इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र है.
इस दौरान सीजेआई किसी भी मामले की सुनवाई नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट के जजों की आंतरिक प्रक्रिया के मुताबिक आरोपी जज मामलों की सुनवाई से दूर रहते हैं.
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